Ad

Rice Production

गेहूं और चावल की पैदावार में बेहतरीन इजाफा, आठ वर्ष में सब्जियों का इतना उत्पादन बढ़ा है

गेहूं और चावल की पैदावार में बेहतरीन इजाफा, आठ वर्ष में सब्जियों का इतना उत्पादन बढ़ा है

मिनिस्ट्री ऑफ स्टैटिक्स एंड प्रोग्राम इंप्लीमेंटेशन के आंकड़ों के अनुरूप, भारत में चावल एवं गेहूं की पैदावार में बंपर इजाफा दर्ज किया गया है। 2014-15 के 4.2% के तुलनात्मक चावल और गेहूं की पैदावार 2021-22 में बढ़कर 5.8% पर पहुंच चुकी है। भारत में आम जनता के लिए सुखद समाचार है। किसान भाइयों के परिश्रम की बदौलत भारत ने खाद्य पैदावार में बढ़ोतरी दर्ज की है। पिछले 8 वर्ष के आकड़ों पर गौर फरमाएं तो गेहूं एवं चावल की पैदावार में बंपर बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है, जो कि किसान के साथ- साथ सरकार के लिए भी एक अच्छा संकेत और हर्ष की बात है। विशेष बात यह है, कि सरकार द्वारा बाकी फसलों की खेती पर ध्यान केंद्रित किए जाने के उपरांत चावल और गेहूं की पैदावार में वृद्धि दर्ज की गई है।

आजादी के 75 सालों बाद भी तिलहन व दलहन पर आत्मनिर्भर नहीं भारत

व्यावसायिक मानकीकृत के अनुसार, भारत गेंहू और चावल का निर्यात करता है। विशेष रूप से भारत बासमती चावल का सर्वाधिक निर्यातक देश है। ऐसी स्थिति में सरकार चावल एवं गेंहू को लेकर बेधड़क रहती है। हालाँकि, स्वतंत्रता के 75 वर्षों के उपरांत भी भारत तिलहन एवं दाल के संबंध में आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है। मांग की आपूर्ति करने के लिए सरकार को विदेशों से दाल एवं तिलहन का आयात करने पर मजबूर रहती है। इसी वजह से दाल एवं खाद्य तेलों का भाव सदैव अधिक रहता है। इसकी वजह से सरकार पर भी हमेशा दबाव बना रहता है।

ये भी पढ़ें:
केंद्र द्वारा टूटे चावल को लेकर बड़ा फैसला
ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार वक्त - वक्त पर किसानों को गेंहू - चावल से ज्यादा तिलहन एवं दलहन की पैदावार हेतु प्रोत्साहित करती रहती है। जिसके परिणामस्वरूप भारत को चावल और गेंहू की भांति तिलहन एवं दलहन के उत्पादन के मामले में भी आत्मनिर्भर किया जा सके।

बागवानी के उत्पादन में भी 1.5 फीसद का इजाफा

मिनिस्ट्री ऑफ स्टैटिक्स एंड प्रोग्राम इंप्लीमेंटेशन के आंकड़ों के अनुसार, भारत में गेहूं एवं चावल की पैदावार में बंपर इजाफा दर्ज किया गया है। साल 2014-15 के 4.2% के तुलनात्मक चावल और गेहूं की पैदावार 2021-22 में बढ़कर 5.8% पर पहुंच चुकी है। इसी प्रकार फलों और सब्जियों की पैदावार में भी 1.5 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई है। फिलहाल, भारत में कुल खाद्य उत्पादन में फल एवं सब्जियों की भागीदारी बढ़कर 28.1% पर पहुंच चुकी है।

एक माह के अंतर्गत 11 रुपये अरहर दाल की कीमत बढ़ी

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि वर्तमान में दाल की कीमतें बिल्कुल बेलाम हो गई हैं। विगत एक माह के अंतर्गत कीमतों में 5 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। दिल्ली राज्य में अरहर दाल 126 रुपये किलो हो गया है। जबकि, एक माह पूर्व इसकी कीमत 120 रुपये थी। सबसे अधिक अरहर दाल जयपुर में महंगा हुआ है। यहां पर आमजन को एक किलो दाल खरीदने के लिए 130 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। साथ ही, एक माह पूर्व यह दाल 119 रुपये किलो बेची जा रही थी। मतलब कि एक माह के अंतर्गत अरहर दाल 11 रुपये महंगी हो चुकी है।
केंद्र सरकार ये कदम उठाकर चावल की कीमतों को कम करने की योजना बना रही है

केंद्र सरकार ये कदम उठाकर चावल की कीमतों को कम करने की योजना बना रही है

दुनिया के कुल एक्सपोर्ट का 40 फीसदी हिस्सा भारत के पास है। साथ ही, दुनिया का सबसे सस्ता चावल भी भारत की एक्सपोर्ट करता है। भारत, संपूर्ण विश्व को झटका देते हुए चावल की ज्यादातर किस्मों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहा है। भारत सरकार के इस कदम से ग्लोबल मार्केट में चावल की कीमतों में और अधिक बढ़ोत्तरी देखने को मिल सकती है। साथ ही, भारत के अंदर चावल की कीमतों में कटौती देखने को मिल सकती है। दरअसल, अलनीनो की वजह से चावल के उत्पादन पर पहले से ही काफी प्रभाव देखने को मिला है। साथ ही, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चावल की कीमतें पहले ही 11 साल के हाई स्तर पर पहुंच गई हैं। भारत की तरफ से यह कदम लोकल स्तर पर चावल की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए उठाया जा रहा है। भारत के विभिन्न इलाकों में चावल की कीमतों में 20 प्रतिशत से अधिक तक की बढ़ोत्तरी हो चुकी है।

भारत सरकार गैर बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाएगी

मीडिया एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक मामले से परिचित लोगों के अनुसार, सरकार समस्त नॉन-बासमती चावल के निर्यात पर रोकथाम लगाने की योजना पर विचार विमर्श कर रही है। मीडिया को मिले सूत्रों के अनुसार, सरकार विधानसभा चुनाव और उसके उपरांत आम चुनावों से पूर्व भारत में महंगाई के जोखिम से बचना चाहती है। सरकार इस कारण से चावल की नॉन बासमती वैरायटी पर प्रतिबंध लगाने के विषय में सोच रही है। ये भी पढ़े: गेहूं निर्यात पर पाबंदी से घबराए व्यापारी, चावल निर्यात के लिए कर रहे बड़ी डील

भारत सरकार ने चावल की एमएसपी में 7% प्रतिशत की वृद्धि की थी

विशेष बात तो यह है, कि विश्व के कुल निर्यात का 40 प्रतिशत भाग भारत के पास है। साथ ही, भारत विश्व के अंदर सबसे सस्ता चावल भी निर्यात करता है। ऐसे में भारत यदि सस्ते चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाता है, तो दुनिया में चावलों के दाम में और भी इजाफा देखने को मिल सकता है। वहीं, दूसरी तरफ भारतीय चावल के निर्यात की कीमत में 9 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिल चुकी है। विगत महीने ही सरकार ने चावल के एमएसपी में 7 % प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की थी।

भारत में इस बार धान की बुवाई 26 प्रतिशत कम हुई है

गर्मियों में मानसून के आरंभ में बारिश कम होने की वजह से संपूर्ण भारत में बुवाई कम देखने को मिली है। विगत हफ्ते के आंकड़ों पर प्रकाश डालें तो समर में बोये जाने वाला चावल विगत वर्ष की तुलना में 26 प्रतिशत कम है। इसकी वजह अलनीनो को ठहराया जा रहा है, जिसका प्रभाव सिर्फ भारत पर ही देखने को नहीं मिल रहा बल्कि थाईलैंड में भी देखने को मिल रहा है। जहां पर सामान्य से 26 प्रतिशत कम बरसात होने की वजह एक ही फसल उगाने को कहा गया है।
भारत सरकार ने गैर बासमती चावल पर लगाया प्रतिबंध, इन देशों की करेगा प्रभावित

भारत सरकार ने गैर बासमती चावल पर लगाया प्रतिबंध, इन देशों की करेगा प्रभावित

केंद्र सरकार के इस निर्णय से बहुत सारे देशों में चावल की किल्लत हो जाएगी। दरअसल, भारत विश्व का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश है। भारत से बहुत सारे देशों में चावल की आपूर्ति होती है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि केंद्र सरकार द्वारा बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया है। केंद्र सरकार के इस निर्णय से बहुत सारे देशों में चावल की किल्लत हो जाएगी। विशेष रूप से उन देशों में जो चावल के लिए प्रत्यक्ष तौर पर भारत पर आश्रित हैं। सामान्य तौर पर भारत विश्व का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश है। बतादें, कि से अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका समेत एशिया महादेश के भी बहुत सारे देशों में चावल का निर्यात किया जाता है।

केंद्र सरकार ने चावल के निर्यात पर लगाया प्रतिबंध

जानकारों ने बताया है, कि भारत में खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों पर रोकथाम लगाने के लिए केंद्र सरकार ने नॉन बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है। क्योंकि चावल भारत में अधिकांश लोगों का भोजन है। सबसे विशेष बात यह है, कि भारतीय लोग नॉन बासमती चावल का ही सबसे ज्यादा सेवन करते हैं। यदि नॉन बासमती चावल का निर्यात सुचारू रहता तो, इसकी कीमतों में भी बढ़ोतरी हो सकती थी। ऐसे में आम जनता का पेट भरना मुश्किल हो जाता। यही वजह है, कि केंद्र सरकार ने कुछ दिनों के लिए नॉन बासमती चावल पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। ये भी पढ़े: पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

नेपाल में इस वजह से बढ़ने वाले चावल के दाम

भारत से सर्वाधिक नॉन बासमती चावल का निर्यात चीन, नेपाल, कैमरून एवं फिलीपींस समेत विभिन्न देशों में होता है। अगर यह प्रतिबंध ज्यादा वक्त तक रहता है, तो इन देशों में चावल की किल्लत हो सकती है। विशेष कर नेपाल सबसे ज्यादा असर होगा। क्योंकि, नेपाल भारत का पड़ोसी देश है। उत्तर प्रदेश एवं बिहार से इसकी सीमाएं लगती हैं। फासला कम होने के कारण नेपाल को यातायात पर कम लागत लगानी पड़ती है। अगर वह दूसरे देश से चावल खरीदता है, तो निश्चित तौर पर निर्यात पर अत्यधिक खर्चा करना पड़ेगा। इससे नेपाल पहुंचते-पहुंचते चावल की कीमतें बढ़ जाऐंगी, जिससे महंगाई में भी इजाफा हो सकता है।

भारत ने बीते वर्ष टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था

बतादें, कि ऐसा बताया जा रहा है, कि गैर- बासमती चावल पर प्रतिबंध लगाए जाने से भारत से निर्यात होने वाले करीब 80 फीसदी चावल पर प्रभाव पड़ेगा। हालांकि, केंद्र सरकार के इस कदम से रिटेल बाजार में चावल की कीमतों में गिरावट आ सकती है। साथ ही, दूसरे देशों में कीमतें बढ़ जाऐंगी। एक आंकड़े के अनुसार, विश्व की तकरीबन आधी आबादी का भोजन चावल ही है। मतलब कि वे किसी न किसी रूप में चावल खाकर ही अपना पेट भरते हैं। अब ऐसी स्थिति में इन लोगों के लिए चिंता का विषय है। बतादें, कि विगत वर्ष भारत ने टूटे हुए चावल के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था।